कविता

कब आओगे कृष्ण कन्हैया

“कब आओगे कृष्ण कन्हैया” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता सन् 1970 की जन्माष्टमी के दिन लिखी गयी थी। कृष्ण के विरह में व्याकुल कवि की पुकार है यह कविता। पढ़ें और आनंद लें–

कब आओगे कृष्ण कन्हैया, राधा के साँवरियाँ।
सूने पनघट आज पड़े हैं, भर जाओ फिर गागरिया॥

ग्वाल-बाल सब टेर रहे हैं, नटवर नागर कहाँ गये।
रास रचाओ, गौये चराओ, क्यों तुम हमको भूल गए?

आज तुम्हारे बिन नंदलाला, गोपी अश्रु बहाती हैं।
दर्शन को चित और आज वे, रह-रह कर अकुलाती हैं।

कब जमुना तट पर आकर के बाजेगी प्रभु बाँसुरिया।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, ओ राधा के साँवरियाँ॥

तुम बिन कुँजे लगे भयानक, गलियाँ सूनी लगती हैं,
वृन्दावन सूना लगता है, मथुरा सूनी लगती है।

अब गोपों की भीर नहीं जाती मिल करके मधुवन को,
रास रचाती नहीं गोपियाँ बहलाने अपने मन को।

गृह – वन सूने तुम बिन सारे, सूनी हैं सब डागरियाँ।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, ओ राधा के साँवरियाँ॥

दुःखी देख तेरा गोपालक, उसकी दशा देख जाओ,
सूखी रोटी के लाले हैं, माखन उन्हें खिला जाओ।

बहुत कस हो गये आज कष्टों का पारावार नहीं,
सच बतलाओ है प्रभु आकर लोगे क्या अवतार नहीं?

उत्तर से घिरती आती है, भीषण दुःख की बादरिया।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, ओ राधा के सांवरिया॥

जिस दिन तुमने जन्म लिया था आज वही दिन आया है,
तुम फिर आओगे मन में भी उमड़ भाव यह आया है।

अगणित भक्त पुकार रहे हैं, पलना डाले बैठे हैं,
किन्तु न जानें अब भी क्योंकर भाग्य हमारे फूटे हैं।

देखों तो घिरती आती है, वही आज फिर आँधिरिया।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, ओ राधा के साँवरियाँ।

आ जाओ फिर है यदुनन्दन, वही रास गो चारण हो,
तब गोवर्धन को धारा था, आज हिमालय धारण हो।

अगणित द्रुपद सुता बिलखाती क्या तुम नहीं देख पाते,
नंगी राधायें फिरती हैं, क्यों प्रभु तरस नहीं खाते,

अपने हाथों से आकर के उन्हें उढ़ाओ चूनरियाँ।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, ओ राधा के साँवरियाँ।

कहाँ गये हो पार्थ सहायक, कुरुक्षेत्र रचने वाले,
तुम चुप हो करके बैठे हो, हमको जीवन के लाले।

कहाँ सो गया चक्र तुम्हारा, कहाँ गया वह गीता-ज्ञान,
यदा यदाहि धर्मस्य’ का नहीं रहा क्या तुमको ज्ञान।

भक्त पुकार रहे हैं तुमको, अगणित मीरा बाबरिया।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, ओ राधा के साँवरियाँ।

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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