धर्म

शिव गीता का पाठ करें – Shiv Geeta in Hindi

शिव गीता (Shiv Geeta) का पाठ जो प्रेमी भक्त करता है, उसे इस संसार में सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। साथ ही इस लोक के बाद वह शिवलोक पाता है। भगवान शिव भोलेनाथ हैं अर्थात् वे शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं। उनकी कृपा से अप्राप्य की प्राप्ति सहज ही सम्भव है। मान्यता है कि शिव गीता (Shiva Geeta) नियमित पढ़ने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा भक्त पर बरसाने लगते हैं। पढ़ें शिव गीता–

पढ़ें शिव गीता का पाठ

दोहा
शिव शंकर गिरिजा पति, महादेव सर्वेश।
धूरी दो निज चरण की, हर लो सकल क्लेश॥

नत मस्तक ‘बजर’ सदा, सिमरण करे तव नाम।
प्रभौ अपर्णा के पति, सिमरू आठों घाम॥

चौपाई
जय शिव शंकर घट घट वासी।
जय शिव शंकर सब गुण रासी।

जय शिव शंकर क्लेश निवारण।
जय शिव शंकर कार्य कारण।

जय शिव शंकर गौर शरीरा।
जय शिव शंकर विमल सुधीरा।

जय शिव शंकर सृष्टि करता।
जय शिव शंकर भव भय हरता।

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जय शिव शंकर पालन हारे।
जय शिव शंकर जय असुरारे।

जय शिव शंकर परम दयाला।
जय शिव शंकर जय कृपाला।

जय शिव शंकर गिरिजा स्वामी।
जय शिव शंकर अन्तर्यामी।

जय शिव शंकर जय त्रिपुरारी।
जय शिव शंकर मैं बलिहारी।

दोहा
जय शिव शंकर प्राण प्रिय, जय गण पति के तात।
जय शिव शंकर विश्व पति, सिमझ दिवस व रात।।

चौपाई
जय जय रामचन्द्र के प्यारे।
जय जय निज भक्तन रखवारे।

जय जय पार्वती के स्वामी।
जय जय जय जय अन्तर्यामी।

जय जय नाथ विश्व उजियारे।
जय जय कर त्रिशूल भय हारे।

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जय जय नंदी के असवारा।
जय जय गिरिजा प्राण आधारा।

जय जय कर में डमरू साजे।
जय जय योगिन हृदय विराजे।

जय जय भक्तन सुख करता।
जय जय रोग शोक मोह हरता।

जय जय शिव गंगा धारी।
जय जय भाल चन्द्र सुख कारी।

जय जय नील कंठ पितु माता।
जय जय मन हर सुन्दर गाता।

दोहा
जय जय आपकी गा रहा हिमगिरी और कैलाश।
जय जय प्रभु पूरण करो अपने जय जन की आश।।

चौपाई
एक समय एक पापी भारी।
त्रिपुर नाम जो अत्याचारी।

घोर पाप करता मन माने।
देवी देव को कुछ नहीं जाने।

उदय अस्त तक जो थी धरनी।
थर थर कांपे त्रिपुर की करनी।

चर और अचर सभी भय भीता।
उसके काम धर्म विपरीता।

वेद शास्त्र की जो ध्वनि करते।
वे उस असुर के हाथो मरते।

हवन यज्ञ दान जो करता।
उस की तेग से धर्मी मरता।

गौ ब्राह्मण का शत्रु भारी।
पाप कर्म उसकी मति मारी।

ऋषि मुनि योगी सब घबराये।
डरता कोई ना शीश उठाये।

दोहा
परमेश्वर का भय न था उसके हृदय माहीं।
दुखी करे धर्मी जगत तनिक भी डरता नाही।।

चौपाई
तीन लोक उसका भय माने।
तृणावत वह ईं आदिक जाने।

सप्त सिंधु पर हुकम चलावे।
मंदिर आदि नीच गिरावे।

पवन अग्नि जल सब भय भीता।
पंच भूत वश धाम व शीता।

जो कोई हरि ओम उच्चारे।
वह पापी उसको झट मारे।

त्राहि त्राहि मही सकल पुकारी।
त्रिपुर के बोझ से भई दुखयारी।

उलट पुलट वह नियम बनावे।
जिस से प्रजा बहुत दुख पावे।

बहुत नीच और अत्याचारी।
पर तिय हरण करे व्यभिचारी।

दुखः हरो प्रभु प्रजा पुकारे।
हे शंकर भक्तन रखवारे।

दोहा
नील कंठ महाराज ने मारा असुर महान।
ब्रह्मादिक करते स्तुति देव पुष्प बरसान।

चौपाई
मारा नीच लोग हर्षाये।
तीन लोक शिव के गुण गाये।

जीव जन्तु सब भय सुखारे।
जय जय जय ऋषि मुनि उच्चारे।

चंद्र सूर जल पवन धियावें।
अग्नि आदिक शिव गुण गावें।

तीन लोक में डमरू बाजे।
शिव शंकर कैलाश विराजे।

नंदी शंकर के गुण गाता।
सेव कमावे लम्बदर माता।

जब जब भार पड़े धरती पर।
तब तब दुखः हरते शिव शंकर।

और देव जब जब हिय हारें।
मिल कर सब महादेव पुकारें।

तब भक्तो की रक्षा करते।
गंगा धर भव संकट हरते।

दोहा
शिव शंकर जी कर रहे भक्तों के दुःख दूर।
पन से जो पूजन करे होते प्रकट हुजूर।

चौपाई
शिव की दया सकल भय हरणी।
शिव की दया भव सागर तरणी।

शिव की कृपा परम सुख दाई।
शिव की कृपा वरणी नहीं जाई।

शिव की दया त्रिताप विनाशनी।
शिव की दया त्रिदोष नाशनी।

शिव की कृपा जासु पर होवे।
शिव की कृपा पाप को धोवे।

शिव की दया है अपरम्पारा।
शिव की दया से पार उतारा।

शिव की दया से मुक्ति पावें।
शिव की कृपा से भव तर जावें।

शिव की दया परम सुख दायनी।
शिव की दया है मुक्ति प्रदायनी।

शिव की कृपा से हो कल्याना।
मुक्त कंठ इमि वेद वखाना।

दोहा
दशरथ नंदन ने किया पूजन जब महा देव।
शंकर के गुण गाय कर तन मन से की सेव॥

चौपाई
बाँध सेतु रावण संहारा।
जनक सुता का कष्ट निवारा।

शंकर दया से पत्थर तारे।
चुन चुन कर पापी सब मारे।

पापारी तब जग ने माना।
वेद पुरान किया गुण गाना।

विष पी कर संसार बचाया।
ऋषि समाज ने शिव गुण गाया।

शिव जी शेषनाग के प्यारे।
शिव जी शीश में गंगा धारे।

गौर वर्ण कैलाश निवासा।
नंदी गंगा शंकर का दासा।

वीर भद्र से अनुचर तोरे।
बसो नाथ हृदय में मोरे।

योगी जन मन वास तिहारा।
कर में सोहे डमरू प्यारा।

दोहा
प्रलय काल के दृश्य को दिखलावे तिरशूल।
कारण में सब सृष्टि को कर देते सम्मूल॥

चौपाई
दक्ष सुता को भ्रम ने घेरा।
उसका कीना दूर अंधेरा।

संत महन्त तब यश को गावें।
लाख चौरासी को तर जावें।

योग मारग के आप हो वाणी।
तब सेवा में लीन भवानी।

नंदी गण की करें सवारी।
जायें देवता सब बलिहारी।

जय मदनारी जय त्रिपुरारी।
तो को सिमरे सदा खिरारी।

दया दृष्टि से जिसे निहारो।
तिस को क्षण में पार उतारो।

जय त्रिनेत्र विश्व के कर्ता।
जय तेरी हो गिरिजा भरता।

जटा जूट शिर गंगा प्यारी।
जायें देवगण सब बलिहारी।

दोहा
जो सिमरे प्रभु आप के नाम आठ चालीस।
वह पाते है मोक्ष को ‘बेजर’ विस्वे बीस॥

चौपाई
शंभु ईश, पशुपति, शिव शंकर।
शूलिन, ईश्वर, शर्व, महेश्वर।

खंड परशु भूतेश, गिरीशा।
गिरिश, मृत्युन्जय, पृय योगीशा।

मुड़ कृतिवास, पिनाकी, प्यारे।
प्रथमाधिप, श्री कंठ सहारे।

रुद्र, उमापति, भर्ग, त्रिलोचन।
व्योमकेश, भव, श्री क्रतुध्वंसन।

शशि शेखर, शिती कंठ, सर्वज्ञा।
धूजटि, हर स्मरहर, गुणाज्ञा।

उग्र, भोम, स्थान, गंगा धर।
विरूपाक्ष त्र्यम्बक प्रभु अघहर।

वृषध्वज, अंधक रिपु ईशाना।
कंपर्दिन कपाल भूताना।

त्रिपुरांतक, कृशानु रेतस।
नील लोहित, श्री मान सुतेजस।

दोहा
जटा जूट प्रभू सिमरिये सब से संदर देव।
दक्ष सुता पति योगि वर सुर श्री महादेव॥

चौपाई
आठ और चालीस जो ध्यावे।
वह नर मुक्ति भुक्ति को पावे

आवा गमन नहीं उसे सताता।
जो शंकर के नाम है गाता।

सायं प्रातः शिव के नामा।
पूर्ण करते वे सब कामा।

रोग शोक उसके मिट जावें।
शंकर नाम जो निस दिन गावें।

भूत प्रेत तिस निकट न आते।
जो नर शिव के नाम है ध्याते।

मन की इच्छा पूरण करते।
जो जन शिव के नाम सिमरते।

पुत्रादिक सब सुख वे पावें।
नाम जो शंकर जी के गावें।

विघ्न दूर तिन के हो जावें।
जो गिरिजा पती जी को ध्यावें।

दोहा
पारवती के नाम हैं एक ऊपर और बीस।
इनके निशि दिन स्मरण से हों प्रसन्न गौरीस।

चौपाई
कात्यायनी, उमा, व काली
गौरी, शिवा दुखः हरने वाली।

हेमवती, ईश्वरी, भवानी।
सर्व मंगला, गिरिजा मृडानी।

दुर्गा, अपर्णा, चंडका, आर्या।
अंबिका, दाक्षायणी, शिव भार्या।

शिव गीता मेनकात्मजा, पारबती, रुद्राणी।
शाक्ति धर माता शर्वाणी।

उमा नाम जो जन नित ध्यावें।
वह नर शिव शंकर को पावें।

दया करें तिसपर त्रिपुरारी।
जो जपे शंकर की प्यारी।

तीन ताप हरते यह नामा।
पूरण होते है सब कामा।

कन्या जपे पाये वर सुंदर।
कहता भुजा अढ़ाए ‘बेजर’।

दोहा
जो सिमरे गनेश को विघ्न नाश हो जायें।
दीर्घायु सुख सम्पति पा भव सागर तर जायें॥

चौपाई
शंकर नाम परम सुख दाई।
सिमरे विघ्न नाश हो जाई।

शंकर नाम योगी जन ध्यावें।
अपना आवा गमन मिटावें।

शंकर नाम करें कल्याना
कट जाये फिर आना जाना।

शंकर नाम त्रिताप निवारें।
ऋषि मुनि योगी उर धारें।

शंकर नाम व्याधि को हरता।
जो कोउ जपे वह भव को तरता।

शंकर नाम भक्त उर को धारें।
शिव शंभू उनके दुख टारें।

शंकर नाम जपे रघुराई।।
विजय लंक पर उन ने पाई।

शंकर नाम से लक्ष्मी पावें।
दुध पूत वह नर अपनावें।

दोहा
शंकर नाम जहाज है, चढ़े तो उतरे पार।
खला है भक्तों के लिए, श्री शंभु का द्वार।।

चौपाई
शिव भक्ति भक्तों को प्यारी।
शिव भक्ति देती सरदारी।

शिव भक्ति भक्तों को भावे।
शिव का भक्त परम पद पावें।

शिव भक्तों को भय नहीं व्यापे।
शिव का भक्त है शंकर आपे।

शिव का भक्त भक्तों का राजा।
जो कुछ करे सभी तिस साजा।

शिव का भक्त सुपंथ बनावे।
शिव का भक्त कुपंथ न जावे।

शिव का भक्त कटें चौरासी।
अन्त होवें शिव धाम निवासी।

शिव का पंथ महा सुख दाई।
पिता है शंकर गिरिजा भाई।

जो शिव की महिमा है गाता।
पुनर जन्म फिर नहीं पाता।

दोहा
जिस पर करते है कृपा, शंकर भोले नाथ।
सम्पदा सब त्रैलोक की, उस के आती हाथ।

चौपाई
नमस्कार मेरी श्री त्रिपुरारी।
नमस्कार मेरी श्री कामारी।

नमस्कार मेरी श्री डमरू वारे।
नमस्कार मेरी श्री गिरिजा प्यारे।

नमस्कार मेरी सब सुख रासी।
नमस्कार कैलाश के वासी।

नमस्कार नन्दी असवारा।
नमस्कार गौरांग पियारा।

मस्कार शक्ति धर ताता।
नमस्कार मेरी वर के दाता।

नमस्कार मेरी पावन रूपा।
नमस्कार मेरी भूपन भूपा।

नमस्कार मेरी अन्तर्यामी।
नमस्कार गिरिजा के स्वामी।

नमस्कार अलका पति प्यारे।
नमस्कार शिर गंगा धारे।

नमस्कार कल्याण स्वरूपा।
नमस्कार मेरी देवन भूपा।

दोहा
नमस्कार तब चरण में, दिवसरात शतबार।
नमस्कार मेरी हो सदा, हे देवन सर्दार॥

चौपाई
मेरे अवगुण नाथ विसारो।
मेरे अवगुण हृदय न धारो।

मेरे अवगुण अपरं पारा।
मेरे अवगुण एक पहारा।

क्षमा करो करके निज दाया।
क्षमा करो अब शरण हूँ आया।

क्षमा करो कैलाश के स्वामी।
क्षमा करो प्रभु अंतर यामी।

मेरे दोष गिणे नहीं जावें।
बालू के कण गिनती पावें।

त्राहि त्राहि भव के दुख हारी।
त्राहि त्राहि कैलाश बिहारी।

तेरी शरण नाथ मैं आया।
तब चरणों में माथ झुकाया।

मेटो मेरा आना जाना।
जन्म मरन का सुख दुख पाना।

दोहा
दक्ष सुता के प्राण पति, तुझ पर हूं बलिहार।
नत मस्तक हूं नाथ वर, निशिदिन बारंबार।

चौपाई
महादेव मैं तुझको ध्याऊँ।
महादेव तेरे गुण मैं गाऊं।

महादेव तुज पर मन वारू।
महादेव नहीं तुझे वसारू।

महादेव तब शरण में आया।
महादेव सिमरे मम काया।

महादेव मम बाणी गावे।
महादेव बिनु और न भावे।

महादेव सकले दुख हरते।
महादेव जो सिमरन करते।

महादेव सब कष्ट निवारें।
महादेव तन मन को ठारें।

महादेव जपते योगीश्वर।
महादेव को मुनी मुनीश्वर।

महादेव सब के है प्यारें।
महादेव गुण भक्त उचारे।

दोहा
वाम देव रक्षा करें रोग मिट जाय।
महादेव की शरण में भाग्यवान ही आय।

चौपाई
बाल चंद्र मस्तक पर सोहे।
शिर में गंग मुनि मन मोहे।

जटा जूट बांगबर साजे।
डिम डिम डिम डिम डमरू बाजे

नीख कंठ नंदी असवारा।
सजे कंठ में सर्पन हारा।

तन विभूति भोले सोहे।
सकल चरा चर के मन मोहे।

ओड़ें नाथ दिगंबर प्यारा।
गिरी कैलाश पर चौंकडा मारा।

वाम अंग में गिरिजा प्यारी
सुत गणेश को दी सरदारी।

कार्तिक को सेना पति कीना।
सुर नेता पन उसको दीना।

जय शिव शंकर जय हो तेरी।
इच्छा पूरण करनी मेरी।

दोहा
शिव गीता को पढ़े, जो प्रेमी मन लाये।
सुख सम्पती को भोग कर, अंत में शिव पद पाए।

– शिव गीता समाप्त –

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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